Saturday, January 12, 2013

हुस्न के दीवानों से

हुस्न के दीवानों से
कोई ये भी तो पूछ ले
दुनिया की नज़रों से
घूरती निगाहों से
हुस्न को संभाल कर
कैसे रखेंगे?
कैसे उनके नाज़ नखरे
उठाएंगे?
नाज़ुक हाथों से
रोटियाँ कैसे बनवायेंगे?
कैसे घर का झाडू पौंचा
लगवाएंगे?
कपडे क्या खुद धोयेंगे?
बर्तन
क्या किसी और से
मंजवायेंगे
उनके हाथ पैर दुखेंगे
तो क्या खुद दबायेंगे?
मेकअप का खर्चा
क्या पिताजी उठाएंगे?
सवेरे उठेंगे तो
चाय क्या खुद बनायेंगे?
हुस्न के दीवानों से
ये भी कोई पूछ ले
चाह तो रखते हैं मन में
पर ये भी तो जान लें
हूर के बगल में वो
लंगूर कहलायेंगे

साबुत घर लौट आए हो

पचास की उम्र थी
कपड़ों पर इत्र
बालों में खिजाब लगा कर
हाथ में गुलाब का फूल
आँखों पे नज़र का
मोटा चश्मा लगाए
बन ठन कर,
मुस्काराते हुए
बहुत उम्मीद से
वो घर से निकले
कोई खूबसूरत उनकी
तरफ देखेगा
इज़हार-ऐ-मोहब्बत करेगा
उनका सपना पूरा होगा
बड़ी हसरत से
हर मोहतरमा को देखते
मुस्काराते
पर जवाब ना मिलता
पूरे शहर का चक्कर काटते रहे
पैर थक गए
पर किसी ने झाँका तक नहीं
मायूस घर लौट रहे थे
तभी मित्र मिला
उसे दुखड़ा सुनाया
उसने ऊपर से नीचे तक
उन्हें देखा
और बोला शेरवानी फटी हुयी
नाड़ा लटक रहा है,
पान की पीक कपड़ों पर
गिरी हुयी
तुझसे कौन मोहब्बत का
इज़हार करेगा
निरंतर गनीमत समझो
बगैर जूते खाए
साबुत घर लौट आए हो

आखिर कुछ तो करूँ

चार मकान,
चार गाडी खरीद लूं
देश विदेश की सैर कर लूं
कुछ सोना,चांदी खरीद लूं
धनवानों में गिनती होगी
आगे पीछे भीड़ होगी
मेरी भी पूछ होगी
छाती चौड़ी होगी
मन को तसल्ली होगी
फिर रातों की नींद उडेगी
चोरी की चिंता रहेगी
लोगों को जलन होगी
रंजिश में शिकायतें होगी
इनकम टैक्स वालों की
जांच होगी
छुपी बातें बाहर आयेंगी
वकील की जरूरत पड़ेगी
मोटी फीस देनी पड़ेगी
ज़िन्दगी हराम होगी
मरने की इच्छा करेगी
जब मरना ही है
तो क्यूं सब खरीदूं ?
निरंतर फक्कड़ रहा हूँ
फक्कड़ ही रह लूं
यूँ ही ख्वाब देखता रहूँ
अमीरी,गरीबी
ख़्वाबों में देख लूं
टाइम पास करने के लिए

आखिर कुछ तो करूँ